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शेर
फ़रीहा नक़वी
शेर
खिल उठे गुल या खिले दस्त-ए-हिनाई तेरे
हर तरफ़ तू है तो फिर तेरा पता किस से करें
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
शेर
सब बिछड़े साथी मिल जाएँ मुरझाएँ चेहरे खिल जाएँ
सब चाक दिलों के सिल जाएँ कोई ऐसा काम करो 'वाली'
वाली आसी
शेर
ख़ुद अपनी लौह-ए-तमन्ना पे खिल के देखूँगा
किसी के जब्र ने लिक्खा था राएगाँ मुझ को