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शेर
सारी ख़िल्क़त राह में है और हो मंज़िल में तुम
दोनों आलम दिल से बाहर हैं फ़क़त हो दिल में तुम
अहमद हुसैन माइल
शेर
सहरा में बसे सब दीवाने शहरों में भी महशर है बरपा
अल्लाह तिरी इस ख़िल्क़त से बाक़ी न रहा वीराना तक
अफ़ीफ़ सिराज
शेर
तमन्ना दर्द-ए-दिल की हो तो कर ख़िदमत फ़क़ीरों की
नहीं मिलता ये गौहर बादशाहों के ख़ज़ीनों में
अल्लामा इक़बाल
शेर
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
एक के घर की ख़िदमत की और एक के दिल से मोहब्बत की
दोनों फ़र्ज़ निभा कर उस ने सारी उम्र इबादत की
ज़ेहरा निगाह
शेर
अदब ता'लीम का जौहर है ज़ेवर है जवानी का
वही शागिर्द हैं जो ख़िदमत-ए-उस्ताद करते हैं
चकबस्त बृज नारायण
शेर
अभी ज़िंदा हूँ लेकिन सोचता रहता हूँ ख़ल्वत में
कि अब तक किस तमन्ना के सहारे जी लिया मैं ने
साहिर लुधियानवी
शेर
वही शागिर्द फिर हो जाते हैं उस्ताद ऐ 'जौहर'
जो अपने जान-ओ-दिल से ख़िदमत-ए-उस्ताद करते हैं
लाला माधव राम जौहर
शेर
न दरवेशों का ख़िर्क़ा चाहिए न ताज-ए-शाहाना
मुझे तो होश दे इतना रहूँ मैं तुझ पे दीवाना