aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "khilvaa.d"
बात सुनाए न लगी दिल की बुझाए न कली दिल की खिलाए न ग़म-ओ-रंज घटाए न रह-ओ-रस्मबढ़ाए जो कहो कुछ तो ख़फ़ा हो कहे शिकवे की ज़रूरत जो यही है तो न चाहो जो न
भरी बहार में इक शाख़ पर खिला है गुलाबकि जैसे तू ने हथेली पे गाल रक्खा है
अभी ज़िंदा हूँ लेकिन सोचता रहता हूँ ख़ल्वत मेंकि अब तक किस तमन्ना के सहारे जी लिया मैं ने
अजब महफ़िल है सब इक दूसरे पर हँस रहे हैंअजब तंहाई है ख़ल्वत की ख़ल्वत रो रही है
कोई तो फूल खिलाए दुआ के लहजे मेंअजब तरह की घुटन है हवा के लहजे में
मैं सोचता हूँ मुझे इंतिज़ार किस का हैकिवाड़ रात को घर का अगर खुला रह जाए
दुआ करो कि ये पौदा सदा हरा ही लगेउदासियों में भी चेहरा खिला खिला ही लगे
कभी ख़िरद कभी दीवानगी ने लूट लियातरह तरह से हमें ज़िंदगी ने लूट लिया
खिलना कहीं छुपा भी है चाहत के फूल काली घर में साँस और गली तक महक गई
था व'अदा शाम का मगर आए वो रात कोमैं भी किवाड़ खोलने फ़ौरन नहीं गया
ऐ वतन जब भी सर-ए-दश्त कोई फूल खिलादेख कर तेरे शहीदों की निशानी रोया
है आदमी बजाए ख़ुद इक महशर-ए-ख़यालहम अंजुमन समझते हैं ख़ल्वत ही क्यूँ न हो
ज़ुलेख़ा बे-ख़िरद आवारा लैला बद-मज़ा शीरींसभी मजबूर हैं दिल से मोहब्बत आ ही जाती है
खिलना कम कम कली ने सीखा हैउस की आँखों की नीम-ख़्वाबी से
हर तमन्ना दिल से रुख़्सत हो गईअब तो आ जा अब तो ख़ल्वत हो गई
फूलों में वही तो फूल ठहराजो तेरे सलाम को खिला हो
है हर्फ़ हर्फ़ ज़ख़्म की सूरत खिला हुआफ़ुर्सत मिले तो तुम मिरा दीवान देखना
मान मौसम का कहा छाई घटा जाम उठाआग से आग बुझा फूल खिला जाम उठा
फिर बालों में रात हुईफिर हाथों में चाँद खिला
पिला साक़िया मय-ए-जाँ पिला कि मैं लाऊँ फिर ख़बर-ए-जुनूँये ख़िरद की रात छटे कहीं नज़र आए फिर सहर-ए-जुनूँ
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