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शेर
नक़्श होती जाती हैं लाखों बुतों की सूरतें
क्या ये दिल भी ख़ित्ता-ए-हिन्दोस्ताँ हो जाएगा
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम
शेर
न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दोस्ताँ वालो
तुम्हारी दास्ताँ तक भी न होगी दास्तानों में
अल्लामा इक़बाल
शेर
क्या करूँ ख़िलअत ओ दस्तार की ख़्वाहिश कि मुझे
ज़ीस्त करने का सलीक़ा भी ज़ियाँ से आया
अब्बास रिज़वी
शेर
हर किताब-ए-सोहबत-ए-रंगीं के मअ'नी देख कर
फ़र्द-ए-तन्हाई के मज़मूँ कूँ किया हूँ इंतिख़ाब
मिर्ज़ा दाऊद बेग
शेर
किताब-ए-ख़ाक पढ़ी ज़लज़ले की रात उस ने
शगुफ़्त-ए-गुल के ज़माने में वो यक़ीं लाया