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शेर
मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है
किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता
जावेद अख़्तर
शेर
'रियाज़' एहसास-ए-ख़ुद्दारी पे कितनी चोट लगती है
किसी के पास जब जाता है कोई मुद्दआ' ले कर
रियाज़ ख़ैराबादी
शेर
दिल तो बे-तरह मेरा लग ही चला था उस से
पर मैं जूँ तूँ के बचाया इसे ख़ुद्दारी से
फ़ख़रुद्दीन ख़ाँ माहिर
शेर
भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम
क़िस्तों में ख़ुद-कुशी का मज़ा हम से पूछिए
ख़ुमार बाराबंकवी
शेर
ये कैसा नश्शा है मैं किस अजब ख़ुमार में हूँ
तू आ के जा भी चुका है मैं इंतिज़ार में हूँ
मुनीर नियाज़ी
शेर
ख़ुद को बिखरते देखते हैं कुछ कर नहीं पाते हैं
फिर भी लोग ख़ुदाओं जैसी बातें करते हैं