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शेर
साफ़ दिल हो गर है तुझ कूँ ख़्वाहिश-ए-तर्क-ए-हवा
आब-ए-आईना उपर आता नहीं हरगिज़ हबाब
मिर्ज़ा दाऊद बेग
शेर
ख़्वाहिश-ए-दीदार में आँखें भी हैं मेरी रक़ीब
सात पर्दों में छुपा रक्खा है उस के नूर को
इमदाद अली बहर
शेर
ख़्वाहिश-ए-वस्ल तो रखता हूँ बहुत जी में वले
क्या करूँ मैं जो मिरे दिल से तिरा दिल न मिले
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
ख़्वाहिश-ए-वस्ल का मज़मूँ जो किसी सत्र में था
क्या कहूँ ख़त को मिरे पढ़ के वो क्या क्या उछला
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
ख़्वाहिश-ए-वस्ल से ख़त पढ़ने के क़ाबिल न रहा
लिपटे अल्फ़ाज़ से अल्फ़ाज़ मुकर्रर हो कर
नसीम देहलवी
शेर
ख़्वाहिश-ए-सूद थी सौदे में मोहब्बत के वले
सर-ब-सर इस में ज़ियाँ था मुझे मालूम न था