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शेर
मिरा कुछ हाल कह कर ज़िक्र-ए-मजनूँ करते हैं आशिक़
किताब-ए-आशिक़ी में अपना क़िस्सा पेश-ख़्वानी है
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
शेर
हर-दिल-अज़ीज़ वो भी है हम भी हैं ख़ुश-मिज़ाज
अब क्या बताएँ कैसे हमारी नहीं बनी
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
शेर
वक़्त-ए-नज़्ज़ारा न रो कहते थे ऐ चश्म तुझे
शिद्दत-ए-गिर्या से ले ख़ाक न सूझा, देखा