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शेर
सुना किस ने हाल मेरा कि जूँ अब्र वो न रोया
रखे है मगर ये क़िस्सा असर-ए-दुआ-ए-बाराँ
बन्द्र इब्न-ए-राक़िम
शेर
मंसूर ने न ज़ुल्फ़ के कूचे की राह ली
नाहक़ फँसा वो क़िस्सा-ए-दार-ओ-रसन के बीच
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
क़िस्सा-ए-मजनूँ-ओ-फ़र्हाद भी इक पर्दा है
जो फ़साना है यहाँ शरह-ओ-बयाँ है अपना
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
डूब जाता है मिरा जी जो कहूँ क़िस्सा-ए-दर्द
नींद आती है मुझी कूँ मिरे अफ़्साने में