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शेर
मोहब्बत को समझना है तो नासेह ख़ुद मोहब्बत कर
किनारे से कभी अंदाज़ा-ए-तूफ़ाँ नहीं होता
ख़ुमार बाराबंकवी
शेर
सभी के दीप सुंदर हैं हमारे क्या तुम्हारे क्या
उजाला हर तरफ़ है इस किनारे उस किनारे क्या
हफ़ीज़ बनारसी
शेर
डूब जाता है मिरा जी जो कहूँ क़िस्सा-ए-दर्द
नींद आती है मुझी कूँ मिरे अफ़्साने में