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शेर
शकील बदायूनी
शेर
छेड़ती हैं कभी लब को कभी रुख़्सारों को
तुम ने ज़ुल्फ़ों को बहुत सर पे चढ़ा रक्खा है
ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी
शेर
मिल गए थे एक बार उस के जो मेरे लब से लब
'उम्र भर होंटों पे अपने मैं ज़बाँ फेरा किया