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शेर
कुछ तो है वैसे ही रंगीं लब ओ रुख़्सार की बात
और कुछ ख़ून-ए-जिगर हम भी मिला देते हैं
आल-ए-अहमद सुरूर
शेर
इश्क़ की तर्ज़-ए-तकल्लुम वही चुप है कि जो थी
लब-ए-ख़ुश-गू-ए-हवस महव-ए-बयाँ है कि जो था
सय्यद आबिद अली आबिद
शेर
लाग़र ऐसा वहशत-ए-इश्क़-ए-लब-ए-शीरीं में हूँ
च्यूंटियाँ ले जाती हैं दाना मिरी ज़ंजीर का
असद अली ख़ान क़लक़
शेर
हंगाम-ए-क़नाअ'त दिल-ए-मुर्दा हुआ ज़िंदा
मज़मून-ए-क़ुम ए'जाज़-ए-लब-ए-नान-ए-जवीं था
अहमद हुसैन माइल
शेर
दुनिया का ख़ून दौर-ए-मोहब्बत में है सफ़ेद
आवाज़ आ रही है लब-ए-जू-ए-शीर से
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
या गुफ़्तुगू हो उन लब-ओ-रुख़्सार-ओ-ज़ुल्फ़ की
या उन ख़मोश नज़रों के लुत्फ़-ए-सुख़न की बात
जयकृष्ण चौधरी हबीब
शेर
बनाते हैं हज़ारों ज़ख़्म-ए-ख़ंदाँ ख़ंजर-ए-ग़म से
दिल-ए-नाशाद को हम इस तरह पुर-शाद करते हैं