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शेर
हुस्न की शर्त-ए-वफ़ा जो ठहरी तेशा ओ संग-ए-गिराँ की बात
हम हों या फ़रहाद हो आख़िर आशिक़ तो मज़दूर रहा
अज़ीज़ हामिद मदनी
शेर
हमें तो याद नहीं कोई लम्हा-ए-इशरत
कभी तुम्हीं ने किसी दिन हँसा दिया होगा