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शेर
पहले भी जहाँ पर बिछड़े थे वही मंज़िल थी इस बार मगर
वो भी बे-लौस नहीं लौटा हम भी बे-ताब नहीं आए
हिलाल फ़रीद
शेर
जब आ जाती है दुनिया घूम फिर कर अपने मरकज़ पर
तो वापस लौट कर गुज़रे ज़माने क्यूँ नहीं आते