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शेर
न लुटता दिन को तो कब रात को यूँ बे-ख़बर सोता
रहा खटका न चोरी का दुआ देता हूँ रहज़न को
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
जो चला गया सो चला गया जो है पास उस का ख़याल रख
जो लुटा दिया उसे भूल जा जो बचा है उस को सँभाल रख
यासमीन हबीब
शेर
बलाएँ ले रहा हूँ इस ज़मीं के ज़र्रे ज़र्रे की
लुटा था जिस जगह राह-ए-वफ़ा में कारवाँ मेरा
महशर लखनवी
शेर
लूटा जो उस ने मुझ को तो आबाद भी किया
इक शख़्स रहज़नी में भी रहबर लगा मुझे