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शेर
उमीद-ए-वस्ल ने धोके दिए हैं इस क़दर 'हसरत'
कि उस काफ़िर की हाँ भी अब नहीं मालूम होती है
चराग़ हसन हसरत
शेर
फ़ुर्क़त में कार-ए-वस्ल लिया वाह वाह से
हर आह-ए-दिल के साथ इक अरमाँ निकल गया
ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़
शेर
क्यूँ तू रोता है दिला आने दे रोज़-ए-वस्ल को
इस क़दर छेड़ूँगा उन को वो भी रो कर जाएँगे
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शेर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
कमर बाँधो मुक़द्दर के सहारे बैठने वालो
शिकस्त-ए-रज़्म से राहों का पेच-ओ-ख़म न बदलेगा
सय्यद बासित हुसैन माहिर लखनवी
शेर
मिरा चाक-ए-गिरेबाँ चाक-ए-दिल से मिलने वाला है
मगर ये हादसे भी बेश ओ कम होते ही रहते हैं