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शेर
'नाज़िम' ये इंतिज़ाम रिआ'यत है नाम की
मैं मुब्तला नहीं हवस-ए-मुल्क-ओ-माल का
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
शेर
आया है मिरे दिल का ग़ुबार आँसुओं के साथ
लो अब तो हुई मालिक-ए-ख़ुश्की-ओ-तरी आँख
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
शेर
मैं बहुत कमज़ोर था इस मुल्क में हिजरत के बाद
पर मुझे इस मुल्क में कमज़ोर-तर उस ने किया
मुनीर नियाज़ी
शेर
ज़मीं के मालिक-ओ-मुख़्तार की सुन्नत समझ कर
खड़ावें पहन लीं और बकरियाँ रक्खी हुई हैं
आसिम नदीम आसी
शेर
अब और इस के सिवा चाहते हो क्या 'मुल्ला'
ये कम है उस ने तुम्हें मुस्कुरा के देख लिया
आनंद नारायण मुल्ला
शेर
मलक-उल-मौत मोअज़्ज़िन है मिरा वस्ल की रात
दम निकल जाता है जब वक़्त-ए-अज़ाँ आता है
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
शेर
'मुनीर' इस मुल्क पर आसेब का साया है या क्या है
कि हरकत तेज़-तर है और सफ़र आहिस्ता आहिस्ता
मुनीर नियाज़ी
शेर
तुम आओ मर्ग-ए-शादी है न आओ मर्ग-ए-नाकामी
नज़र में अब रह-ए-मुल्क-ए-अदम यूँ भी है और यूँ भी
साइल देहलवी
शेर
है अजब निज़ाम ज़कात का मिरे मुल्क में मिरे देस में
इसे काटता कोई और है इसे बाँटता कोई और है
ज़ियाउल हक़ क़ासमी
शेर
जुनूँ के शाह ने जब से लिया है क़िलअ'-ए-दिल को
ये मुल्क-ए-अक़्ल वीराँ हो गया किस किस ख़राबी से