aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "maana-e-bandagi-e-shauq"
वो बुलाते तो हैं मुझ को मगर ऐ जज़्बा-ए-दिलशौक़ इतना भी न बढ़ जाए कि जाए न बने
दास्तान-ए-शौक़ कितनी बार दोहराई गईसुनने वालों में तवज्जोह की कमी पाई गई
जहाँ में हो गई ना-हक़ तिरी जफ़ा बदनामकुछ अहल-ए-शौक़ को दार-ओ-रसन से प्यार भी है
महव-ए-दीद-ए-चमन-ए-शौक़ है फिर दीदा-ए-शौक़गुल-ए-शादाब वही बुलबुल-ए-शैदा है वही
जज़्बा-ए-बे-इख़्तियार-ए-शौक़ देखा चाहिएसीना-ए-शमशीर से बाहर है दम शमशीर का
लज़्ज़त-ए-सज्दा-हा-ए-शौक़ न पूछहाए वो इत्तिसाल-ए-नाज़-ओ-नियाज़
दीदनी है ये सरासीमगी-ए-दीदा-ए-शौक़कि तिरे दर पे खड़े हैं तिरा दर याद नहीं
मुसाफ़िरान-ए-रह-ए-शौक़ सुस्त-गाम हो क्यूँक़दम बढ़ाए हुए हाँ क़दम बढ़ाए हुए
है ख़याल उस का माना-ए-गुफ़्तारवर्ना सौ क़ुव्वत-ए-बयाँ है मुझे
अगर हंगामा-हा-ए-शौक़ से है ला-मकाँ ख़ालीख़ता किस की है या रब ला-मकाँ तेरा है या मेरा
ग़ैर को या रब वो क्यूँकर मन-ए-गुस्ताख़ी करेगर हया भी उस को आती है तो शरमा जाए है
बंदा-परवर मैं वो बंदा हूँ कि बहर-ए-बंदगीजिस के आगे सर झुका दूँगा ख़ुदा हो जाएगा
ख़ीरा-सरान-ए-शौक़ का कोई नहीं है जुम्बा-दारशहर में इस गिरोह ने किस को ख़फ़ा नहीं किया
बे-ख़ुद-ए-शौक़ हूँ आता है ख़ुदा याद मुझेरास्ता भूल के बैठा हूँ सनम-ख़ाने का
न रही बे-ख़ुदी-ए-शौक़ में इतनी भी ख़बरहिज्र अच्छा है कि 'महरूम' विसाल अच्छा है
पा-ब-गिल बे-ख़ुदी-ए-शौक़ से मैं रहता थाकूचा-ए-यार में हालत मिरी दीवार की थी
निय्यत-ए-शौक़ भर न जाए कहींतू भी दिल से उतर न जाए कहीं
निगाह-ए-शौक़ अगर दिल की तर्जुमाँ हो जाएतो ज़र्रा ज़र्रा मोहब्बत का राज़-दाँ हो जाए
ढूँढती है इज़्तिराब-ए-शौक़ की दुनिया मुझेआप ने महफ़िल से उठवा कर कहाँ रक्खा मुझे
ख़त-ए-शौक़ को पढ़ के क़ासिद से बोलेये है कौन दीवाना ख़त लिखने वाला
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