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शेर
सुब्ह सवेरे नंगे पाँव घास पे चलना ऐसा है
जैसे बाप का पहला बोसा क़ुर्बत जैसे माओं की
हम्माद नियाज़ी
शेर
ऐ ज़ुल्म के मातो लब खोलो चुप रहने वालो चुप कब तक
कुछ हश्र तो उन से उट्ठेगा कुछ दूर तो नाले जाएँगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
शेर
लोगों को अपनी फ़िक्र है लेकिन मुझे नदीम
बज़्म-ए-हयात-ओ-नज़्म-ए-गुलिस्ताँ की फ़िक्र है
अब्दुल मतीन नियाज़
शेर
दिल ने हर दौर में दुनिया से बग़ावत की है
दिल से तुम रस्म-ओ-रिवायात की बातें न करो