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शेर
गरचे है तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल पर्दा-दार-ए-राज़-ए-इश्क़
पर हम ऐसे खोए जाते हैं कि वो पा जाए है
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
इक अश्क-ए-नदामत से धुल जाते सभी इस्याँ
इक अश्क-ए-नदामत तक पहुँचा ही नहीं कोई
माया खन्ना राजे बरेलवी
शेर
पहली सी लज़्ज़तें नहीं अब दर्द-ए-इश्क़ में
क्यूँ दिल को मैं ने ज़ुल्म का ख़ूगर बना दिया
सेहर इश्क़ाबादी
शेर
क्या क्या हैं दर्द-ए-इश्क़ की फ़ित्ना-तराज़ियाँ
हम इल्तिफ़ात-ए-ख़ास से भी बद-गुमाँ रहे
असग़र गोंडवी
शेर
कैफ़ इक्रामी
शेर
दर्स-ए-इल्म-ए-इश्क़ से वाक़िफ़ नहीं मुतलक़ फ़क़ीह
नहव ही में महव है या सर्फ़ ही में सर्फ़ है
वलीउल्लाह मुहिब
शेर
सिराज औरंगाबादी
शेर
कूचा-ए-यार में रहने से नहीं और हुसूल
इश्क़ है मुझ को इक उस के दर-ओ-दीवार के साथ