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शेर
चुपके चुपके उठ रहा है मध-भरे सीनों में दर्द
धीमे धीमे चल रही हैं इश्क़ की पुरवाइयाँ
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
फ़िक्र-ए-मआश इश्क़-ए-बुताँ याद-ए-रफ़्तगाँ
इस ज़िंदगी में अब कोई क्या क्या किया करे
मोहम्मद रफ़ी सौदा
शेर
लुत्फ़-ए-शब-ए-मह ऐ दिल उस दम मुझे हासिल हो
इक चाँद बग़ल में हो इक चाँद मुक़ाबिल हो