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शेर
तामीर-ओ-तरक़्क़ी वाले हैं कहिए भी तो उन को क्या कहिए
जो शीश-महल में बैठे हुए मज़दूर की बातें करते हैं
ओबैदुर रहमान
शेर
दिल का सारा दर्द सिमट आया है मेरी पलकों में
कितने ताज-महल डूबेंगे पानी की इन बूँदों में
वहीद अर्शी
शेर
लिख कर जो मेरा नाम ज़मीं पर मिटा दिया
उन का था खेल ख़ाक में मुझ को मिला दिया