aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "mahjuur"
एक ने'मत तिरे महजूर के हाथ आई हैईद का चाँद चराग़-ए-शब-ए-तन्हाई है
ख़राब हो के भी सोचा किए तिरे महजूरयही कि तेरी नज़र है तिरी नज़र फिर भी
तर्क-ए-तअल्लुक़ात में महजूर तो हुएलेकिन ख़याल-ओ-ख़्वाब में वो रू-ब-रू रहे
इलाज ये है कि मजबूर कर दिया जाऊँवगरना यूँ तो किसी की नहीं सुनी मैं ने
इतनी मिलती है मिरी ग़ज़लों से सूरत तेरीलोग तुझ को मिरा महबूब समझते होंगे
ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँमैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया
ऐ दोस्त हम ने तर्क-ए-मोहब्बत के बावजूदमहसूस की है तेरी ज़रूरत कभी कभी
अजब तेरी है ऐ महबूब सूरतनज़र से गिर गए सब ख़ूबसूरत
ज़ालिम था वो और ज़ुल्म की आदत भी बहुत थीमजबूर थे हम उस से मोहब्बत भी बहुत थी
गुल हो महताब हो आईना हो ख़ुर्शीद हो मीरअपना महबूब वही है जो अदा रखता हो
अभी न छेड़ मोहब्बत के गीत ऐ मुतरिबअभी हयात का माहौल ख़ुश-गवार नहीं
हम आप क़यामत से गुज़र क्यूँ नहीं जातेजीने की शिकायत है तो मर क्यूँ नहीं जाते
महसूस हो रहा है कि मैं ख़ुद सफ़र में हूँजिस दिन से रेल पर मैं तुझे छोड़ने गया
ग़म-ए-ज़माना ने मजबूर कर दिया वर्नाये आरज़ू थी कि बस तेरी आरज़ू करते
लफ़्ज़ ओ मंज़र में मआनी को टटोला न करोहोश वाले हो तो हर बात को समझा न करो
ज़िंदगी है अपने क़ब्ज़े में न अपने बस में मौतआदमी मजबूर है और किस क़दर मजबूर है
मुझ को मालूम है महबूब-परस्ती का अज़ाबदेर से चाँद निकलना भी ग़लत लगता है
एक मोहब्बत काफ़ी हैबाक़ी उम्र इज़ाफ़ी है
तुम्हें ख़याल नहीं किस तरह बताएँ तुम्हेंकि साँस चलती है लेकिन उदास चलती है
अमीर-ज़ादों से दिल्ली के मिल न ता-मक़्दूरकि हम फ़क़ीर हुए हैं इन्हीं की दौलत से
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