aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "mahv-e-KHayaal"
वो दे रहा था तलब से सिवा सभी को 'ख़याल'सो मैं ने दामन-ए-दिल और कुछ कुशादा किया
ने बुत-कदा से काम न मतलब हरम से थामहव-ए-ख़याल-ए-यार रहे हम जहाँ रहे
मख़्लूक़ को तुम्हारी मोहब्बत में ऐ बुतोईमान का ख़याल न इस्लाम का लिहाज़
इस क़दर महव न हों आप ख़ुद-आराई मेंदाग़ लग जाए न आईना-ए-यकताई में
महव हैं हज़रत-ए-ख़याल अपनेहाल-ए-दिल में मुराक़िबा बाँधे
क़ासिद पयाम उन का न कुछ देर अभी सुनारहने दे महव-ए-लज़्ज़त-ए-ज़ौक़-ए-ख़बर मुझे
बे-ख़तर कूद पड़ा आतिश-ए-नमरूद में इश्क़अक़्ल है महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम अभी
यारान-ए-तेज़-गाम ने मंज़िल को जा लियाहम महव-नाला-ए-जरस-ए-कारवाँ रहे
सब अपना हाल कहते रहे चारासाज़ सेमैं था कि महव-ए-लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-जिगर रहा
महव-ए-दीद-ए-चमन-ए-शौक़ है फिर दीदा-ए-शौक़गुल-ए-शादाब वही बुलबुल-ए-शैदा है वही
यारान-ए-तेज़-गाम ने महमिल को जा लियाहम महव-ए-नाला-ए-जरस-ए-कारवां रहे
तमाशा कि ऐ महव-ए-आईना-दारीतुझे किस तमन्ना से हम देखते हैं
ज़िंदगी महव-ए-ख़ुद-आराई थीआँख उठा कर भी न देखा हम ने
दिल धड़कता है सर-ए-राह-ए-ख़यालअब ये आवाज़ जहाँ तक पहुँचे
हस्ती के मत फ़रेब में आ जाइयो 'असद'आलम तमाम हल्क़ा-ए-दाम-ए-ख़याल है
निकल गया मिरी आँखों से मिस्ल-ए-ख़्वाब-व-ख़यालगुज़र गया दिल-ए-रौशन से वो नज़र बन कर
मैं तुझ को दस्त-ए-हक़ीक़त से छू के देखूँगातू एक पैकर-ए-ख़्वाब-ओ-ख़याल है जानाँ
न होगा कोई मुझ सा महव-ए-तसव्वुरजिसे देखता हूँ समझता हूँ तू है
ये दीवाने हैं महव-ए-दीद दिलबरनहीं कुछ मानते याँ को न वाँ को
मैं आज सोग मनाना सिखाने वाला हूँइधर को आएँ जिन्हें महव-ए-यास होना है
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