aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "mahzuuz"
सर पे सूरज है तो फिर छाँव से महज़ूज़ न होधूप का रंग भी दीवार में आ सकता है
दरेग़ चश्म-ए-करम से न रख कि ऐ ज़ालिमकरे है दिल को मिरे तेरी यक नज़र महज़ूज़
इतनी मिलती है मिरी ग़ज़लों से सूरत तेरीलोग तुझ को मिरा महबूब समझते होंगे
ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँमैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया
ऐ दोस्त हम ने तर्क-ए-मोहब्बत के बावजूदमहसूस की है तेरी ज़रूरत कभी कभी
अजब तेरी है ऐ महबूब सूरतनज़र से गिर गए सब ख़ूबसूरत
दोस्तों को भी मिले दर्द की दौलत या रबमेरा अपना ही भला हो मुझे मंज़ूर नहीं
गुल हो महताब हो आईना हो ख़ुर्शीद हो मीरअपना महबूब वही है जो अदा रखता हो
ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता हैवही होता है जो मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है
अभी न छेड़ मोहब्बत के गीत ऐ मुतरिबअभी हयात का माहौल ख़ुश-गवार नहीं
क़ुबूल कैसे करूँ उन का फ़ैसला कि ये लोगमिरे ख़िलाफ़ ही मेरा बयान माँगते हैं
हम आप क़यामत से गुज़र क्यूँ नहीं जातेजीने की शिकायत है तो मर क्यूँ नहीं जाते
चेहरे पे सारे शहर के गर्द-ए-मलाल हैजो दिल का हाल है वही दिल्ली का हाल है
देखोगे तो हर मोड़ पे मिल जाएँगी लाशेंढूँडोगे तो इस शहर में क़ातिल न मिलेगा
यक़ीन हो तो कोई रास्ता निकलता हैहवा की ओट भी ले कर चराग़ जलता है
महसूस हो रहा है कि मैं ख़ुद सफ़र में हूँजिस दिन से रेल पर मैं तुझे छोड़ने गया
लफ़्ज़ ओ मंज़र में मआनी को टटोला न करोहोश वाले हो तो हर बात को समझा न करो
कितने लहजों के ग़िलाफ़ों में छुपाऊँ तुझ कोशहर वाले मिरा मौज़ू-ए-सुख़न जानते हैं
जिस ने इस दौर के इंसान किए हैं पैदावही मेरा भी ख़ुदा हो मुझे मंज़ूर नहीं
मुझ को मालूम है महबूब-परस्ती का अज़ाबदेर से चाँद निकलना भी ग़लत लगता है
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