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शेर
हम में बाक़ी नहीं अब ख़ालिद-ए-जाँ-बाज़ का रंग
दिल पे ग़ालिब है फ़क़त हाफ़िज़-ए-शीराज़ का रंग
अकबर इलाहाबादी
शेर
गर हो शराब ओ ख़ल्वत ओ महबूब-ए-ख़ूब-रू
ज़ाहिद क़सम है तुझ को जो तू हो तो क्या करे
मोहम्मद रफ़ी सौदा
शेर
न ख़ौफ़-ए-बर्क़ न ख़ौफ़-ए-शरर लगे है मुझे
ख़ुद अपने बाग़ को फूलों से डर लगे है मुझे
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
शेर
कूचा-ए-हुस्न छुटा तो हुए रुस्वा-ए-शराब
अपनी क़िस्मत में जो लिक्खी थी वो ख़्वारी न गई