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शेर
हम ऐसे सादा-दिलों की नियाज़-मंदी से
बुतों ने की हैं जहाँ में ख़ुदाइयाँ क्या क्या
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
शेर
क्यूँ न अफ़ई चले हर एक जगह मकड़ा कर
न पड़ा उस को तिरी ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम से काम
मोहम्मद रफ़ी सौदा
शेर
सारी दुनिया जैसे ना-मर्दी को ओढ़े हर तरफ़
बस तमाशाई खड़ी है चश्म-ए-हैरानी के साथ