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शेर
मोहब्बत के लिए कुछ ख़ास दिल मख़्सूस होते हैं
ये वो नग़्मा है जो हर साज़ पर गाया नहीं जाता
मख़मूर देहलवी
शेर
हम ने हँस हँस के तिरी बज़्म में ऐ पैकर-ए-नाज़
कितनी आहों को छुपाया है तुझे क्या मालूम
मख़दूम मुहिउद्दीन
शेर
वो हिन्दी नौजवाँ यानी अलम-बरदार-ए-आज़ादी
वतन की पासबाँ वो तेग़-ए-जौहर-दार-ए-आज़ादी
मख़दूम मुहिउद्दीन
शेर
दीप जलते हैं दिलों में कि चिता जलती है
अब की दीवाली में देखेंगे कि क्या होता है
मख़दूम मुहिउद्दीन
शेर
न किसी आह की आवाज़ न ज़ंजीर का शोर
आज क्या हो गया ज़िंदाँ में कि ज़िंदाँ चुप है