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शेर
खुलेगा किस तरह मज़मूँ मिरे मक्तूब का या रब
क़सम खाई है उस काफ़िर ने काग़ज़ के जलाने की
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
वो मुंकिर है तो फिर शायद हर इक मकतूब-ए-शौक़ उस ने
सर-अंगुश्त-ए-हिनाई से ख़लाओं में लिखा होगा
जौन एलिया
शेर
वो पढ़ें भी तो खुले क्या मिरे मक्तूब का हाल
है सियह फ़र्त-ए-निगारिश से सरासर काग़ज़