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शेर
मलक-उल-मौत मोअज़्ज़िन है मिरा वस्ल की रात
दम निकल जाता है जब वक़्त-ए-अज़ाँ आता है
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
शेर
आया है मिरे दिल का ग़ुबार आँसुओं के साथ
लो अब तो हुई मालिक-ए-ख़ुश्की-ओ-तरी आँख