aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "man-bhaavan"
जिस के बाइस अभी ठंडक है मिरे सीने मेंभड़क उठता हूँ अगर नाम लिया जाता है
आज तेरी भवाँ ने मस्जिद मेंहोश खोया है हर नमाज़ी का
बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँयाद आती है! चौका बासन चिमटा फुकनी जैसी माँ
मार देती है ज़िंदगी ठोकरज़ेहन जब उल्टे पाँव चलता है
जल बुझूँगा भड़क के दम भर मेंमैं हूँ गोया दिया दिवाली का
तू भले मेरा ए'तिबार न करज़िंदगी मैं तिरे कहे में हूँ
तू वो बहार जो अपने चमन में आवारामैं वो चमन जो बहाराँ के इंतिज़ार में है
कोई मंज़िल कभी नहीं आईरास्ते में था रास्ते में हूँ
शाख़ों पर इबहाम के पैकर लटक रहे हैंलफ़्ज़ों के जंगल में मअनी भटक रहे हैं
भटक रहा हूँ मैं इस दश्त-ए-संग में कब सेअभी तलक तो दर-ए-आईना खुला न मिला
तिरी तलाश में जाने कहाँ भटक जाऊँसफ़र में दश्त भी आता है घर भी आता है
अमाँ में आ के भी जिस की मैं बे-अमान रहूँकिसी भी ऐसी नज़र का मुझे हिसार न दे
पूछना चाँद का पता 'आज़र'जब अकेले में रात मिल जाए
दिन में परियों की कोई कहानी न सुनजंगलों में मुसाफ़िर भटक जाएँगे
'अल्वी' ने आज दिन में कहानी सुनाई थीशायद इसी वजह से मैं रस्ता भटक गया
इस ख़ौफ़ में कि खुद न भटक जाएँ राह मेंभटके हुओं को राह दिखाता नहीं कोई
ऐसे भटक रहा है ख़राबे में आदमीजैसे उसे कभी भी हिदायत नहीं मिली
ग़म है आवारा अकेले में भटक जाता हैजिस जगह रहिए वहाँ मिलते-मिलाते रहिए
कहिए आईना-ए-सद-फ़स्ल-ए-बहाराँ तुझ कोकितने फूलों की महक है तिरे पैराहन में
पावँ से काँटा निकल जाए अगरअपनी रफ़्तार बढ़ा लूँ मैं भी
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