aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "mantaa"
समझेगा आदमी को वहाँ कौन आदमीबंदा जहाँ ख़ुदा को ख़ुदा मानता नहीं
उस के यूँ तर्क-ए-मोहब्बत का सबब होगा कोईजी नहीं ये मानता वो बेवफ़ा पहले से था
हर बात जानते हुए दिल मानता न थाहम जाने ए'तिबार के किस मरहले में थे
वफ़ा के शहर में अब लोग झूट बोलते हैंतू आ रहा है मगर सच को मानता है तो आ
मुझ को मज़ा है छेड़ का दिल मानता नहींगाली सुने बग़ैर सितम-गर कहे बग़ैर
बच्चों का सा मिज़ाज है तख़्लीक़-कार काअपने सिवा किसी को बड़ा मानता नहीं
हश्र को मानता हूँ बे-देखेहाए हंगामा उस की महफ़िल का
ये भी तो इक दलील है उस के वजूद कीजब तक न मानिए उसे दिल मानता नहीं
'मीर' जी इश्क़ माना कि ने'मत नहीं पर मैं इस को बला भी नहीं मानतामानता हूँ ख़ुदा-ए-सुख़न भी तुम्हें और हुक्म-ए-ख़ुदा भी नहीं मानता
दिल का क्या करूँ यारो मानता नहीं मेरीअपने दिल की सुनता है अपने मन की करता है
पहले भी ख़ुदा को मानता थाऔर अब भी ख़ुदा को मानता हूँ
दिल तो सादा है तेरी हर बात को सच्चा मानता हैअक़्ल ने बातें करते तेरा आँख चुराना देखा है
मैं नहीं मानता काग़ज़ पे लिखा शजरा-ए-नसबबात करने से क़बीले का पता चलता है
मैं ऐसे हुस्न-ए-ज़न को ख़ुदा मानता नहींआहों के एहतिजाज से जो मावरा रहे
माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैंतू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख
जाने वो शहर में अब किस का बुरा मानता हैमैं तो जब बात करूँ उस से बुरा मानता है
करूँ क़त्-ए-उल्फ़त बुतों से व-लेकिनये काफ़िर मिरा दिल नहीं मानता है
मैं मानता हूँ बुरा बीत बीत जाएगामगर वो तीर जो तेरी कमाँ से आएगा
फिर वही ज़िद कि दिल को समझा लोदिल मिरी बात मानता कब है
ये 'इश्क़ जज़्बा-ए-रूहानियत है मानता हूँमगर तू जिस्म की मजबूरियाँ भी समझा कर
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