aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "mantarii"
उठो ये मंज़र-ए-शब-ताब देखने के लिएकि नींद शर्त नहीं ख़्वाब देखने के लिए
मेरे टूटे हौसले के पर निकलते देख करउस ने दीवारों को अपनी और ऊँचा कर दिया
किस तरह जमा कीजिए अब अपने आप कोकाग़ज़ बिखर रहे हैं पुरानी किताब के
वो कौन था जो दिन के उजाले में खो गयाये चाँद किस को ढूँडने निकला है शाम से
कोई ख़ुद-कुशी की तरफ़ चल दियाउदासी की मेहनत ठिकाने लगी
जो चुप-चाप रहती थी दीवार परवो तस्वीर बातें बनाने लगी
जीता है सिर्फ़ तेरे लिए कौन मर के देखइक रोज़ मेरी जान ये हरकत भी कर के देख
जलाने वाले जलाते ही हैं चराग़ आख़िरये क्या कहा कि हवा तेज़ है ज़माने की
क्यूँ चलते चलते रुक गए वीरान रास्तोतन्हा हूँ आज मैं ज़रा घर तक तो साथ दो
मुझे पसंद नहीं ऐसे कारोबार में हूँये जब्र है कि मैं ख़ुद अपने इख़्तियार में हूँ
दरिया के किनारे पे मिरी लाश पड़ी थीऔर पानी की तह में वो मुझे ढूँड रहा था
ज़रा देर बैठे थे तन्हाई मेंतिरी याद आँखें दुखाने लगी
कब तक पड़े रहोगे हवाओं के हाथ मेंकब तक चलेगा खोखले शब्दों का कारोबार
चुप-चाप बैठे रहते हैं कुछ बोलते नहींबच्चे बिगड़ गए हैं बहुत देख-भाल से
नींद भी जागती रही पूरे हुए न ख़्वाब भीसुब्ह हुई ज़मीन पर रात ढली मज़ार में
सोए तो दिल में एक जहाँ जागने लगाजागे तो अपनी आँख में जाले थे ख़्वाब के
तुम किसी के भी हो नहीं सकतेतुम को अपना बना के देख लिया
कभी ख़ाक वालों की बातें भी सुनकभी आसमानों से नीचे उतर
हम मोहब्बत का सबक़ भूल गएतेरी आँखों ने पढ़ाया क्या है
अल्लाह जाने किस पे अकड़ता था रात दिनकुछ भी नहीं था फिर भी बड़ा बद-ज़बान था
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