aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "mantoo"
बेटियाँ बाप की आँखों में छुपे ख़्वाब को पहचानती हैंऔर कोई दूसरा इस ख़्वाब को पढ़ ले तो बुरा मानती हैं
समझेगा आदमी को वहाँ कौन आदमीबंदा जहाँ ख़ुदा को ख़ुदा मानता नहीं
उस के यूँ तर्क-ए-मोहब्बत का सबब होगा कोईजी नहीं ये मानता वो बेवफ़ा पहले से था
अब मुझे मानें न मानें ऐ 'हफ़ीज़'मानते हैं सब मिरे उस्ताद को
हर बात जानते हुए दिल मानता न थाहम जाने ए'तिबार के किस मरहले में थे
वफ़ा के शहर में अब लोग झूट बोलते हैंतू आ रहा है मगर सच को मानता है तो आ
चर्ख़ को कब ये सलीक़ा है सितमगारी मेंकोई माशूक़ है इस पर्दा-ए-ज़ंगारी में
मुझ को मज़ा है छेड़ का दिल मानता नहींगाली सुने बग़ैर सितम-गर कहे बग़ैर
मिरे अलावा सभी लोग अब ये मानते हैंग़लत नहीं थी मिरी राय उस के बारे में
'हफ़ीज़' अहल-ए-ज़बाँ कब मानते थेबड़े ज़ोरों से मनवाया गया हूँ
बच्चों का सा मिज़ाज है तख़्लीक़-कार काअपने सिवा किसी को बड़ा मानता नहीं
वाइज़ ख़ता-मुआफ़ कि रिंदान-ए-मय-कदादिल के सिवा किसी का कहा मानते नहीं
हश्र को मानता हूँ बे-देखेहाए हंगामा उस की महफ़िल का
ये भी तो इक दलील है उस के वजूद कीजब तक न मानिए उसे दिल मानता नहीं
हम को 'रियाज़' जानते हैं मानते हैं सबहिन्दोस्तान में धूम हमारी ज़बाँ की है
'मीर' जी इश्क़ माना कि ने'मत नहीं पर मैं इस को बला भी नहीं मानतामानता हूँ ख़ुदा-ए-सुख़न भी तुम्हें और हुक्म-ए-ख़ुदा भी नहीं मानता
दिल का क्या करूँ यारो मानता नहीं मेरीअपने दिल की सुनता है अपने मन की करता है
पहले भी ख़ुदा को मानता थाऔर अब भी ख़ुदा को मानता हूँ
दिल तो सादा है तेरी हर बात को सच्चा मानता हैअक़्ल ने बातें करते तेरा आँख चुराना देखा है
मैं नहीं मानता काग़ज़ पे लिखा शजरा-ए-नसबबात करने से क़बीले का पता चलता है
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