aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "masak"
हम ने काँटों को भी नरमी से छुआ है अक्सरलोग बेदर्द हैं फूलों को मसल देते हैं
महक रही है ज़मीं चाँदनी के फूलों सेख़ुदा किसी की मोहब्बत पे मुस्कुराया है
इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले करहम ग़रीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़
चाहोगे तो क्या है न निबाहोगे तो क्या है बहुत इतराओ न दिल दे के ये किस काम का दिलहै ग़म-ओ-अंदोह का मारा अभी चाहूँ तो मैं रख दूँ इसे तलवों से मसल कर अभी मुँह
जिन के किरदार से आती हो सदाक़त की महकउन की तदरीस से पत्थर भी पिघल सकते हैं
जब तुझे याद कर लिया सुब्ह महक महक उठीजब तिरा ग़म जगा लिया रात मचल मचल गई
इश्क़ है इश्क़ ये मज़ाक़ नहींचंद लम्हों में फ़ैसला न करो
बोसा जो रुख़ का देते नहीं लब का दीजिएये है मसल कि फूल नहीं पंखुड़ी सही
भीगी मिट्टी की महक प्यास बढ़ा देती हैदर्द बरसात की बूँदों में बसा करता है
ये राह-ए-इश्क़ है आख़िर कोई मज़ाक़ नहींसऊबतों से जो घबरा गए हों घर जाएँ
तुझ को ख़बर नहीं कि तिरा कर्ब देख करअक्सर तिरा मज़ाक़ उड़ाता रहा हूँ मैं
है मश्क़-ए-सुख़न जारी चक्की की मशक़्क़त भीइक तुर्फ़ा तमाशा है 'हसरत' की तबीअत भी
खिलना कहीं छुपा भी है चाहत के फूल काली घर में साँस और गली तक महक गई
हँसी मज़ाक़ की बातें यहीं पे ख़त्म हुईंअब इस के बअ'द कहानी रुलाने वाली है
महक उठी है फ़ज़ा पैरहन की ख़ुशबू सेचमन दिलों का खिलाने को ईद आई है
तिरे बदन की महक को गुलाब से तश्बीहकि जैसे कोई दिखाए चराग़ सूरज को
फिर कई ज़ख़्म-ए-दिल महक उट्ठेफिर किसी बेवफ़ा की याद आई
ये ज़ुल्फ़-बर-दोश कौन आया ये किस की आहट से गुल खिले हैंमहक रही है फ़ज़ा-ए-हस्ती तमाम आलम बहार सा है
नींद मिट्टी की महक सब्ज़े की ठंडकमुझ को अपना घर बहुत याद आ रहा है
ज़र्रे ज़र्रे में महक प्यार की डाली जाएबू तअस्सुब की हर इक दिल से निकाली जाए
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books