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शेर
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
ग़म-ए-उम्र-ए-मुख़्तसर से अभी बे-ख़बर हैं कलियाँ
न चमन में फेंक देना किसी फूल को मसल कर
शकील बदायूनी
शेर
मसल सच है बशर की क़दर नेमत ब'अद होती है
सुना है आज तक हम को बहुत वो याद करते हैं
भारतेंदु हरिश्चंद्र
शेर
दिखाने को नहीं हम मुज़्तरिब हालत ही ऐसी है
मसल है रो रहे हो क्यूँ कहा सूरत ही ऐसी है
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
शेर
हज़ारों दिल मसल कर पैर से झुँझला के यूँ बोले
लो पहचानो तुम्हारा इन दिलों में कौन सा दिल है
बयान मेरठी
शेर
ज़र्बुल-मसल है होते हैं माशूक़ बे-वफ़ा
ये कुछ तुम्हारा ज़िक्र नहीं है ख़फ़ा न हो
मिर्ज़ा हादी रुस्वा
शेर
चंद बातें वो जो हम रिंदों में थीं ज़र्बुल-मसल
अब सुना मिर्ज़ा कि दर्द-ए-अहल-ए-इरफ़ाँ हो गईं