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शेर
जब से फ़रेब-ए-ज़ीस्त में आने लगा हूँ मैं
ख़ुद अपनी मुश्किलों को बढ़ाने लगा हूँ मैं
मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी
शेर
बसा के दिल में तिरे ग़म तिरे सितम ऐ दोस्त
जहाँ जहाँ से भी गुज़रा मैं नग़्मा-ख़्वाँ गुज़रा