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शेर
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
शेर
ये रास रंग ये मेल मिलन इक हाथ में चाँद इक में सूरज
इक रात का मौज मज़ा सारा इक दिन का सैर-सपाटा है
अज़ीज़ क़ैसी
शेर
दिलों के मेल से आगे लबों के सिलसिले सारे
जो लब ख़ामोश होते हैं तो आँखें बात करती हैं