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शेर
फ़लक पे चाँद चमकता है दश्त में जैसे
यूँ राह में तिरी पायल हुई है मिस्ल-ए-चराग़
फ़ैसल क़ादरी गुन्नौरी
शेर
शगुफ़्ता बाग़-ए-सुख़न है हमीं से ऐ 'साबिर'
जहाँ में मिस्ल-ए-नसीम-ए-बहार हम भी हैं
फ़ज़ल हुसैन साबिर
शेर
निकल गया मिरी आँखों से मिस्ल-ए-ख़्वाब-व-ख़याल
गुज़र गया दिल-ए-रौशन से वो नज़र बन कर
मज़ाक़ बदायूनी
शेर
शह-ज़ोर अपने ज़ोर में गिरता है मिस्ल-ए-बर्क़
वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले
मिर्ज़ा अज़ीम बेग 'अज़ीम'
शेर
मिस्ल-ए-तिफ़्लाँ वहशियों से ज़िद है चर्ख़-ए-पीर को
गर तलब मुँह की करें बरसाए पत्थर सैकड़ों
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
शेर
हम सरगुज़िश्त क्या कहें अपनी कि मिस्ल-ए-ख़ार
पामाल हो गए तिरे दामन से छूट कर