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शेर
अगर बख़्शे ज़हे क़िस्मत न बख़्शे तो शिकायत क्या
सर-ए-तस्लीम ख़म है जो मिज़ाज-ए-यार में आए
नवाब अली असग़र
शेर
दिल धड़कता है शब-ए-ग़म में कहीं ऐसा न हो
मर्ग भी बन कर मिज़ाज-ए-यार तरसाए मुझे
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
शेर
हूँ मैं वो दीवाना-ए-नाज़ुक-मिज़ाज-ए-गुल-रुख़ाँ
कीजिए ज़ंजीर जिस को साया-ए-ज़ंजीर से
मीर मोहम्मदी बेदार
शेर
न मिज़ाज-ए-नाज़-ए-जल्वा कभी पा सकीं निगाहें
कि उलझ के रह गई हैं तिरी ज़ुल्फ़-ए-ख़म-ब-ख़म में
अख़्तर ओरेनवी
शेर
'नसीर' अब हम को क्या है क़िस्सा-ए-कौनैन से मतलब
कि चश्म-ए-पुर-फुसून-ए-यार का अफ़्साना रखते हैं