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शेर
सब मुमकिन था प्यार मोहब्बत हँसते चेहरे ख़्वाब-नगर
लेकिन एक अना ने कितने भोले दिन बर्बाद किए
मरग़ूब अली
शेर
जैसे ख़ला के पस-मंज़र में रंग रंग के नक़्श-ओ-निगार
बातें उस की वज़्न से ख़ाली लहजा भारी-भरकम है
मोहम्मद अहमद रम्ज़
शेर
हर फूल पे क़दग़न कि तिरी शक्ल पे निकले
हर ज़ख़्म पे लाज़िम कि तिरा दस्त-निगर हो
मोहम्मद जावेद अनवर
शेर
मोहब्बत के लिए कुछ ख़ास दिल मख़्सूस होते हैं
ये वो नग़्मा है जो हर साज़ पर गाया नहीं जाता