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शेर
हम अहल-ए-दिल ने मेयार-ए-मोहब्बत भी बदल डाले
जो ग़म हर फ़र्द का ग़म है उसी को ग़म समझते हैं
अली जवाद ज़ैदी
शेर
है मोहब्बत ऐसी बंधी गिरह जो न एक हाथ से खुल सके
कोई अहद तोड़े करे दग़ा मिरा फ़र्ज़ है कि वफ़ा करूँ
आरज़ू लखनवी
शेर
यही इंसाफ़ तिरे अहद में है ऐ शह-ए-हुस्न
वाजिब-उल-क़त्ल मोहब्बत के गुनहगार हैं सब