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शेर
वो जो शा'इरी का सबब हुआ वो मु'आमला भी 'अजब हुआ
मैं ग़ज़ल सुनाऊँ हूँ इस लिए कि ज़माना उस को भुला न दे
कलीम आजिज़
शेर
किस तरह हुस्न-ए-ज़बाँ की हो तरक़्क़ी 'वहशत'
मैं अगर ख़िदमत-ए-उर्दू-ए-मुअ'ल्ला न करूँ
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
शेर
हर-चंद कि आसी हूँ प उम्मत में हूँ उस की
जिस का है क़दम अर्श-ए-मुअ'ल्ला से भी बाला
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
शेर
जब अर्श-ए-मुअल्ला पे मिरे नक़्श-ए-क़दम हैं
क्या चीज़ है फिर औज-ए-सुरय्या मिरे आगे