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शेर
जो तलब पे अहद-ए-वफ़ा किया तो वो आबरू-ए-वफ़ा गई
सर-ए-आम जब हुए मुद्दई तो सवाब-ए-सिदक़-ओ-वफ़ा गया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
शेर
क़यामत है कि होवे मुद्दई का हम-सफ़र 'ग़ालिब'
वो काफ़िर जो ख़ुदा को भी न सौंपा जाए है मुझ से
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
ग़ज़ब है मुद्दई जो हो वही फिर मुद्दआ' ठहरे
जो अपना दुश्मन-ए-दिल हो वही दिल की दवा ठहरे
शिव नारायण आराम
शेर
क्या रश्क है कि एक का है एक मुद्दई
तुम दिल में हो तो दर्द हमारे जिगर में है
हिज्र नाज़िम अली ख़ान
शेर
ये नक़्शा है कि मुँह तकने लगा है मुद्दआ' मेरा
ये हालत है कि सूरत देखता है मुद्दई मेरी
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
दिल था बग़ल में मुद्दई ख़ूब हुआ जो ग़म हुआ
जाने से उस की इन दिनों हम को बड़ा फ़राग़ है