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शेर
कटती किसी तरह से नहीं ये शब-ए-फ़िराक़
शायद कि गर्दिश आज तुझे आसमाँ नहीं
मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा
शेर
बोसा देते नहीं और दिल पे है हर लहज़ा निगाह
जी में कहते हैं कि मुफ़्त आए तो माल अच्छा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
जब चाहे तू जला दे मिरे मुश्त-ए-उस्तुख़्वाँ
किस दिन कहा मैं ऐ नफ़स-ए-आतिशीं नहीं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
आदमी क्या वो न समझे जो सुख़न की क़द्र को
नुत्क़ ने हैवाँ से मुश्त-ए-ख़ाक को इंसाँ किया
हैदर अली आतिश
शेर
अपनी मिट्टी है कहाँ की क्या ख़बर बाद-ए-सबा
हो परेशाँ देखिए किस किस जगह मुश्त-ए-ग़ुबार
सुरूर जहानाबादी
शेर
तुफ़ैल-ए-रूह मिरा जिस्म-ए-ज़ार बाक़ी है
हुआ के दम से ये मुश्त-ए-ग़ुबार बाक़ी है