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शेर
बाल रुख़्सारों से जब उस ने हटाए तो खुला
दो फ़रंगी सैर को निकले हैं मुल्क-ए-शाम से
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
'नाज़िम' ये इंतिज़ाम रिआ'यत है नाम की
मैं मुब्तला नहीं हवस-ए-मुल्क-ओ-माल का
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
शेर
तुम आओ मर्ग-ए-शादी है न आओ मर्ग-ए-नाकामी
नज़र में अब रह-ए-मुल्क-ए-अदम यूँ भी है और यूँ भी
साइल देहलवी
शेर
भरे हैं तुझ में वो लाखों हुनर ऐ मजमा-ए-ख़ूबी
मुलाक़ाती तिरा गोया भरी महफ़िल से मिलता है
दाग़ देहलवी
शेर
दिल-लगी के वास्ते देहली में है मटिया-महल
कौन जावे ख़ाक उड़ाने मुल्क-ए-बीकानेर को
किशन लाल तालिब देहलवी
शेर
जुनूँ के शाह ने जब से लिया है क़िलअ'-ए-दिल को
ये मुल्क-ए-अक़्ल वीराँ हो गया किस किस ख़राबी से
लुत्फ़ुन्निसा इम्तियाज़
शेर
दाग़-ए-पेशानी-ए-ज़ाहिद न गया जीते-जी
साथ लाया था ये क्या मुल्क-ए-बक़ा से धब्बा