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शेर
मेले में गर नज़र न आता रूप किसी मतवाली का
फीका फीका रह जाता त्यौहार भी इस दीवाली का
मुमताज़ गुर्मानी
शेर
जो तलब पे अहद-ए-वफ़ा किया तो वो आबरू-ए-वफ़ा गई
सर-ए-आम जब हुए मुद्दई तो सवाब-ए-सिदक़-ओ-वफ़ा गया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
शेर
ग़म-ओ-कर्ब-ओ-अलम से दूर अपनी ज़िंदगी क्यूँ हो
यही जीने का सामाँ हैं तो फिर इन में कमी क्यूँ हो
मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी
शेर
क़यामत है कि होवे मुद्दई का हम-सफ़र 'ग़ालिब'
वो काफ़िर जो ख़ुदा को भी न सौंपा जाए है मुझ से
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
ग़ज़ब है मुद्दई जो हो वही फिर मुद्दआ' ठहरे
जो अपना दुश्मन-ए-दिल हो वही दिल की दवा ठहरे
शिव नारायण आराम
शेर
क्या रश्क है कि एक का है एक मुद्दई
तुम दिल में हो तो दर्द हमारे जिगर में है