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शेर
क्यूँकि होवे ज़ाहिद ख़ुद-बीं मुरीद-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार
उस ने सारी उम्र में ज़ुन्नार कूँ देखा न था
सिराज औरंगाबादी
शेर
मिरे दिल में है कि पूछूँ कभी मुर्शिद-ए-मुग़ाँ से
कि मिला जमाल-ए-साक़ी को ये तनतना कहाँ से
अब्दुल मजीद सालिक
शेर
कठिन है काम तो हिम्मत से काम ले ऐ दिल
बिगाड़ काम न मुश्किल समझ के मुश्किल को
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
शेर
ज़रा दरिया की तह तक तो पहुँच जाने की हिम्मत कर
तो फिर ऐ डूबने वाले किनारा ही किनारा है
बासित भोपाली
शेर
दश्त-ए-जुनूँ की ख़ाक उड़ाने वालों की हिम्मत देखो
टूट चुके हैं अंदर से लेकिन मन-मानी बाक़ी है
कुमार पाशी
शेर
एक बोसे से मुराद-ए-दिल-ए-नाशाद तो दो
कुछ न दो हाथ से पर मुँह से मिरी दाद तो दो