aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "mushk-o-itr"
पाया तबीब ने जो तिरी ज़ुल्फ़ का मरीज़शामिल दवा में मुश्क-ए-शब-ए-तार कर दिया
मेहनत से मिल गया जो सफ़ीने के बीच थादरिया-ए-इत्र मेरे पसीने के बीच था
इस लिए सब से अलग है मिरी ख़ुशबू 'आमी'मुश्क-ए-मज़दूर पसीने में लिए फिरता हूँ
लोग हँसते हैं हमें देख के तन्हा तन्हाआओ बैठें कहीं और उन पे हँसें हम और तुम
तराश और भी अपने तसव्वुर-ए-रब कोतिरे ख़ुदा से तो बेहतर मिरा सनम है अभी
कैसे कैसे मोड़ आएउम्र की एक कहानी में
मैं तो मिट्टी हो रहा था इश्क़ में लेकिन 'अता'आ गई मुझ में कहीं से बे-दिमाग़ी 'मीर' की
एक दिन देखने को आ जातेये हवस उम्र भर नहीं होती
आरज़ू है कि तू यहाँ आएऔर फिर उम्र भर न जाए कहीं
एक मुश्त-ए-ख़ाक और वो भी हवा की ज़द में हैज़िंदगी की बेबसी का इस्तिआरा देखना
देख कर मेरा दश्त-ए-तन्हाईरंग-ए-रू-ए-बहार उतरा है
शाम आए और घर के लिए दिल मचल उठेशाम आए और दिल के लिए कोई घर न हो
साया-ए-अब्र से पूछो 'सरवत'अपने हमराह अगर ले जाए
ऐ ज़िंदगी तू मिरे हौसले की दाद तो देमैं उठ के रोज़ नया दिन गले लगाता हूँ
दर्द-ए-दिल और जान-लेवा पुर्सिशेंएक बीमारी की सौ बीमारियाँ
अब आ गया हूँ तो दिल में उतार लेना मुझेबुला के पास मुझे राएगाँ न कर देना
दफ़्तर-ए-हुस्न सजा रक्खा है उस ने 'आतिर'वो ग़ज़ल को मिरी अर्ज़ी की तरह पढ़ता है
शाम की भीगी हुई पलकों में फिरकोई आँसू आए और तारा बने
बता ऐ अब्र मुसावात क्यूँ नहीं करताहमारे गाँव में बरसात क्यूँ नहीं करता
चाँद ने तान ली है चादर-ए-अब्रअब वो कपड़े बदल रही होगी
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