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शेर
ऐ 'मुसहफ़ी' तू इन से मोहब्बत न कीजियो
ज़ालिम ग़ज़ब ही होती हैं ये दिल्ली वालियाँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
ऐ 'मुस्हफ़ी' सद-शुक्र हुआ वस्ल मयस्सर
इफ़्तार किया रोज़े में उस लब के रोतब से
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
ऐ 'मुसहफ़ी' शायर नहीं पूरब में हुआ मैं
दिल्ली में भी चोरी मिरा दीवान गया था
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
सहराइयान-ए-पूरब क्या जानते हैं इस को
ऐ 'मुसहफ़ी' जुदा है अंदाज़ इस ज़बाँ का
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
तू जो जाता है वहीं नित दौड़ दौड़ ऐ 'मुसहफ़ी'
और क्या दुनिया के सारे ख़ूबसूरत मर गए
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
ऐ 'मुसहफ़ी' उसे भी रखता है शाद जी में
हर दम वो मेरा कहना क्या छातियाँ हैं तेरी
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
ऐ 'मुसहफ़ी' तू और कहाँ शेर का दावा
फबता है ये अंदाज़-ए-सुख़न 'मीर' के मुँह पर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
ऐ 'मुसहफ़ी' अब चखियो मज़ा ज़ोहद का तुम ने
मय-ख़ाने में जा जा के बहुत पी हैं शराबें
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
जो तू ऐ 'मुस्हफ़ी' रातों को इस शिद्दत से रोवेगा
तो मेरी जान फिर क्यूँके कोई हम-साया सोवेगा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
जब से मअ'नी-बंदी का चर्चा हुआ ऐ 'मुसहफ़ी'
ख़लते में जाता रहा हुस्न-ए-ज़बान-ए-रेख़्ता
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
ऐ 'मुसहफ़ी' उस्ताद-ए-फ़न-ए-रेख़्ता-गोई
तुझ सा कोई आलम को मैं छाना नहीं मिलता
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
'मुसहफ़ी' क्यूँके छुपे उन से मिरा दर्द-ए-निहाँ
यार तो बात के अंदाज़ से पा जाते हैं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
क्यूँ शेर-ओ-शायरी को बुरा जानूँ 'मुसहफ़ी'
जिस शायरी ने आरिफ़-ए-कामिल किया मुझे