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शेर
आशिक़ों को नफ़अ कब है इंक़िलाब-ए-दहर से
हम वही बंदे रहेंगे बुत ख़ुदा हो जाएँगे
लाला माधव राम जौहर
शेर
'जलील' इक शेर भी ख़ाली न पाया दर्द ओ हसरत से
ग़ज़ल-ख़्वानी नहीं ये दर-हक़ीक़त नौहा-ख़्वानी है
जलील मानिकपूरी
शेर
शकील बदायूनी
शेर
हमारी लाश गुलिस्ताँ में दफ़्न कर सय्याद
चमन से दूर कोई नौहा-ख़्वाँ रहे न रहे
अबु मोहम्मद वासिल बहराईची
शेर
इश्क़ में क्या नुक़सान नफ़अ है हम को क्या समझाते हो
हम ने सारी उम्र ही यारो दिल का कारोबार किया
जाँ निसार अख़्तर
शेर
ऐ दिल तमाम नफ़अ' है सौदा-ए-इश्क़ में
इक जान का ज़ियाँ है सो ऐसा ज़ियाँ नहीं
मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा
शेर
हिज्र होगा न कोई हिज्र का नौहा होगा
बाज़ आते हैं मोहब्बत से जो होगा होगा